Friday, March 15, 2013

बड़ा असभ्य महसूस करता हूँ मैं भारत में रहने में जब सुबह सुबह अखबारों में खबर पढता हूँ कि एक समाज की, एक धर्म की, एक जाति की अनदेखी हो रही है और वह समाज आन्दोलन करेगा। भारत का संविधान सबको बराबरी का अधिकार प्रदान करता है फिर भी न तो सरकारें संजीदा हैं और न ही समाज संजीदा है। हम बराबरी पर तभी रख पायेंगे किसी को यदि यह समाज एक समाज कहलाएगा। अनेकता की आवश्यकता नहीं है, आवश्यकता है तो केवल एकता की। जब हम भूल जायेंगे कि हम किसी फलां जाति /धर्म के सदस्य हैं और भारत के नागरिक मानेगे स्वयं को तभी संविधान की सत्ता इस राष्ट्र में स्थापित होगी। वरना यह सब दिवा स्वप्न के अलावा कुछ नहीं है।

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