Saturday, September 1, 2012

"क्या जय महाराष्ट्र सही है"

यही कोई पंद्रह वर्ष पहले दूरदर्शन पर एक सीरियल आता था "चाणक्य" नाम से . देश प्रेम के वाक्यों से लबालब यह सीरियल सही मायने में एक महान रचना थी। उस सीरियल के एक एपिसोड में चाणक्य कहते हैं,

"यवनों ने भिन्न-भिन्न जनपदों के आस्था के भेद को नहीं देखा था. आक्रान्ताओं ने सभी के साथ एक जैसा व्यवहार किया था.  दुर्भाग्य ही था की सभी जनपदों ने मिलकर यवनों का सम्मिलित रूप से प्रतिकार नहीं किया.  क्यों??  क्योंकि हममे राष्ट्रीय चरित्र का अभाव था. यदि सभी जनपदों ने राष्ट्र के रूप में संगठित होकर यवनों का प्रतिकार किया होता तो क्या यवनों के लिए इस धरा पर विजय पाना संभव था? यदि सिन्धु की रक्षा का दायित्व सभी जनपदों के लिया होता तो क्या यवनों को सिन्धु को पार कर पाना संभव था? पर कठ, मद्रक, क्षुद्रक और मालव गणराज्यों को ये विश्वास नहीं हो रहा था की उनके प्रदेशों की सीमाओं का द्वार भी तक्षशिला हैं. जहाँ तक हमारी संस्कृति का विस्तार हैं, वहां तक हमारी सीमाए हैं.  हिमालय से समुद्र पर्यंत ये संपूर्ण भूमि हमारी अपनी भूमि हैं, हमारा अपना राष्ट्र हैं. और इस राष्ट्र की रक्षा हम नहीं करेंगे तो इस राष्ट्र की रक्षा कौन करेगा.   यदि हमने अबभी संगठित होकर राष्ट्र के रूप में अपना परिचय नहीं दिया तो आक्रान्ताओं का पुनरागमन हो सकता हैं और इतिहास की पुनरावृत्ति. यदि हम अबभी संगठित नहीं हुए तो आक्रान्ताओं का मार्ग प्रशस्त हैं. आवश्यकता हैं हमें एक छत्र के नीचे एकत्र होने की. ताकि ये राष्ट्र सुदृढ़ और सक्षम हो, शक्तिशाली हो, गौरवशाली हो, और हम अमृत के अमर्त्य पुत्र कह सकें की प्रशस्त पुण्य-पंथ हैं, बढे चलो बढे चलो.."

आज कल राज ठाकरे राष्ट्रीय चेन्नलों पर अपने एक घटिया से बयान के कारण छाए हुए हैं। अपने बुजुर्ग बाल ठाकरे के नक़्शे कदम पर चलते हुए राज ठाकरे मराठी मानुष, जय महाराष्ट्र का नारा कई वर्षों से बुलंद किये हुए हैं और कांग्रेस की सरकार जानकार उनपर कार्यवाही नहीं कर रही। राज ठाकरे के बढ़ने पर शिव सेना का सीधा नुक्सान होगा और कांग्रेस का फायदा। तो कोई भी उन्हें रोकने की कोशिश नहीं कर रहा और वे लगातार बदजुबानी कर रहे हैं। छत्रपति शिवाजी महाराज ने औरंगजेब के समय पर "स्वराज" की स्थापना की थी। उसकी खासियत थी कि  उन्होंने विदेशी तरीकों की जगह देशी तरीकों को तवज्जो दी थी। उनके राज्य को आक्रान्ताओं से मुक्ति दी थी। ठाकरे परिवार अपना आदर्श छत्रपति को घोषित करते हैं और सीधे सीधे ऐसा करके छत्रपति का अपमान करते हैं। छत्रपति की राजनीति का अध्ययन यदि किया जाए तो आप पायेंगे कि  वे हमेशा राष्ट्र प्रेम को तवज्जो देते थे। इसी कारण वे अपने राज्य का विस्तार करते हुए भी अन्याय से दूर रहे। यहाँ तक कि  उन्होंने अपने पुत्र को भी नहीं बक्शा। इसके उलट आजकल के ये तथाकथित नेता मराठी अस्मिता के नाम पर राष्ट्र की अस्मिता का हरण कर रहे हैं। उनके इस कदम का क्या नुक्सान हो सकता है वह ऊपर दिए चाणक्य के वाक्यों में स्पष्ट देखा जा सकता है। 

संगठन ही जीवन है और संगठित रह कर ही हम महान राष्ट्र के रूप में अपना विकास कर सकते हैं। राज ठाकरे शायद यह भूल रहे हैं कि  मुंबई को अंग्रेजों ने बसाया था और एक मछुआरों के गाँव को इतना विशाल रूप यहाँ बसे विभिन्न सम्प्रदायों के लोगों ने दिया क्या मुंबई की कल्पना राजस्थान से आये "बिड़ला " या गुजरात से आये "टाटा" के बिना की जा सकती है। क्या मराठी मानुष बिहार के विस्थापितों के म्हणत काश जीवन का मुकाबला कर पायेंगे। क्या मराठी मानुष का ढोल पीट रहे मनसे के कार्यकर्ता ईंट, पत्थर को उठाकर वहां इमारतें बनाएँगे, या रिक्शा चलाएंगे? यदि नहीं तो बिहार के बिना महाराष्ट्र कहाँ से संभव है। ऐसा नहीं कि  बिहार के केवल मजदूर ही वहां हैं, अपितु वहां पर बिहार के अफसर और बड़े व्यापारी भी हैं। ये सब उस संस्कृति का हिस्सा है जो गर्व से समूचे भारत में सबसे अनूठी संस्कृति होने का सही दंभ भारती है। भारत का संविधान भारत के किसी भी नागरिक को भारत के किसी भी हिस्से में जाकर व्यापार करने की, वहां बसने की आगया देता है। एक घटिया सी पार्टी संविधान से कभी भी ऊपर नहीं हो सकती। यह समझना अति आवश्यक है। इसे केवल बिहार और महाराष्ट्र की समस्या समझकर दरकिनार करने वाले समूचे भारत वासियों को मैं कहना चाहूँगा कि  इनके परिवार का कोई आदमी फिर से झंडा उठा कर क्या पता किसी दिन हरियाणा पंजाब के लोगों को निकालने निकल पड़े इसका मूंह तोड़ जवाब देना जरूरी है। जरूरत है ठाकरे परिवार को जेल के अन्दर दाल दिया जाए ताकि भारत एक रह पाए। इस देश में केवल "जय हिंद" का नारा ही बुलंद रहना चाहिए न की "जय महाराष्ट" या कुछ और। कोई भी राज्य, कोई भी धर्म कोई भी जाति  राष्ट्र से ऊपर नहीं हो सकती। हमारी अनूठी सांस्कृतिक विविधता का ख्याल केवल हम ही रख पायेंगे कोई और नहीं। ठाकरे परिवार का सामाजिक बहिष्कार करना जरूरी है। -रविद्र 

5 comments:

  1. कड़वाहट का जवाब कड़वाहट ...???
    शुभकामनायें आपको !

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    1. सतीश जी, यहाँ समस्या कडवाहट का जवाब कडवाहट की नहीं, अपितु राष्ट की अखंडता की है. ऐसे समय में अहिंसा केवल कमजोर ही करेगी. नागरिकों को चाहिए कि इसका प्रतिरोध करें और सरकार कड़े कदम उठाए. देश के ऊपर हमले में हम हाथ पर हाथ धर कर नहीं बैठ सकते. देश के साथ ही हम हैं.

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  2. its slow poison truth sir ji good

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  4. Ravi, issue is manyfold:
    - Representation: Maha has a larger representation in the central govt & hence riding on such lame principles, political leaders think they can have wider influence when they reach such state #MNS is one such example like Shiv Sena
    - Political Will: every other party including the incumbent thinks that saying anything against this sentiment may jeopardize their prospects in the next elections #2014
    - Sentimental feelings: these sub-regional feelings get more vocal without any sustantial data. It was evident in many other states, just that #MNS is more vocal about it while others were not but the persecution always continued.
    - People: There are many people who tend to agree to such sentiments when they don't get enough opportunities even because of State's or their failure.

    So there isn't any single solution to this problem. You can arrest him or few like him & deal sternly. This will subside the issue momentarily but there needs to be a larger solution to this issue but I do agree that such sentiments need to be curbed ASAP rather waiting for an election to get over. Today its Maharashtra but before this we have seen many examples including Punjab, Tamilnadu, Manipur, Assam etc who always wanted to carve out of India.

    Jai Ho
    Uttishthabharat
    http://www.uttishthabharat.com/


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