Friday, August 17, 2012

एक बेरोजगार

आज मानव सड़क पर चला जा रहा था। उसके मन में कई तरह की गुत्थियां चल रही थीं।नौकरी मिल नहीं रही थी, ऊपर से माँ उसकी चिंता में मरी जा रही थी। मानव के तीन भाइयों में वह ही ऐसा था जिसके पास नौकरी नहीं थी, इसलिए उसे घर में कोई बहुत ज्यादा तवज्जो नहीं दी जाती थी। पिता जी कुछ चाय बनाने की दुकान  के सहारे काम चला रहे थे।

सड़क पर चलते हजारों हजारों लोगों को देखते हुए उसने सोचा,"मेरे जैसे भी बहुत होंगे इनमें", ऊपर वाला अगर पेट भरने के लिए कुछ नहीं देता तो इस दुनिया में क्यों लेके आता है? "मेरे बस में हों तो मैं तो इस दुनिया को छोड़ दूं और फिर ऊपर वाले से पूछूँगा, गरीब की जिंदगी इतनी सस्ती क्यों है? सरकार को भी देखो, अगर कोई गरीब बम्ब विस्फोट में मर जाए तो जीवन की कीमत है एक लाख। अरे इस से ज्यादा तो एक बाबू रिश्वत दे देता है सौ रुपये की रिश्वत लेते पकडे जाने पर। मेरी जिंदगी की कोई कीमत नहीं है।"

तभी एक मोड़ पर एक धमाका हुआ और मानव की जीवन लीला समाप्त हो गयी। एक घंटे में घोषणा हुई, सरकार मृत लोगों को एक लाख और घायलों को पच्चीस हजार मुआवजा दे रही है। धमाके की जांच होगी और दोषियों को बक्शा नहीं जाएगा। -रविन्द्र सिंह/17 अगस्त 2012.

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