Tuesday, August 14, 2012

एक प्रश्न

जब भारत के अंतिम वायसराय को भारत में ब्रिटेन की लेबर गवर्नमेंट ने भेजा था तो उनके पास एक बहुत मुश्किल लक्ष्य था और वह था भारत को आजाद करना और भारत का होने वाला बंटवारा. हालांकि बड़े बड़े विद्वान् इस बात के पूरी तरह से खिलाफ थे. उनमें से एक थे सर जान स्ट्रेची. उनके हिसाब से भारत में धर्म, मजहब, जाति, भाषा और वेशभूषा की विविधता बहुत अधिक थी और भारत का एक आजाद राष्ट्र के रूप में एक होना असंभव था. वे अक्सर कहा करते थे कि अतीत में भारत में राष्ट्र नाम की कोई चीज नहीं थी और न ही ऐसा होने की भविष्य में कोई संभावना है. उनके अनुसार बंगाली, पंजाबी और तमिल एक दूसरे के साथ एक राष्ट्र का नागरिक होना और एक होना महसूस कर सकेंगे उस बात की कोई संभावना नहीं है. रुडयार्ड किपलिंग के अनुसार भारत के लोग चार हजार साल पुराने हैं, वे इतने पुराने हैं कि वे शासन चलाना सीख ही नहीं सकते. उन्हें कानून और व्यवस्था चाहिए, वह ब्रिटेन दे ही रहा है तो भारत को आजाद क्यों किया जाए? पर आज भारत को आजाद हुए सत्तर साल के आस पास हो गए और दुनिया जानती है कि यह मुल्क चल रहा है. तो फिर विभाजन क्यों हुआ? क्या भारत और पाकिस्तान के लिए पंद्रह अगस्त सही मायने में वह आजादी थी जो वे हमेशा से चाहते थे? ये सवाल कितने सालों से घूम रहे हैं और कोई भी इसका जवाब नहीं दे पा रहा है. सभी इतिहासकार और लेखक इस बारे में मतभेद रखते हैं. भारत की आजादी के दस्तावेज बेशक से प्रमाणिक रूप से मौजूद हों पर अधिकांश भारतवासी इसके बारे में नहीं जानते. जिन्ना के दिमाग की उपज थी यह आजादी या इकबाल के दिमाग की; कोई नहीं जानता. 

गाँधी जी भारत को कभी भी बंटते नहीं देखना चाहते थे तो फिर बंटवारा क्यों हुआ? आज तक भारत का एक वर्ग इस बंटवारे के लिए गाँधी जी को ही जिम्मेदार मानता है. आठ जून, ४७ को माउन्टबेटन ने ब्रिटेन की महारानी को एक पत्र लिखा जिसमें वे लिखते हैं कि जैसे ही गाँधी जी को पता लगा कि ब्रिटेन भारत का विभाजन होगा वे बेहद विचलित हो गए. इतने विचलित उन्हें किसी ने भी नहीं देखा था. उन्होंने यहाँ तक कह दिया कि भारत का बंटवारा उनकी लाश पर से होगा. पर कांग्रेस और मुस्लिम लीग कि राजनीति और ब्रिटेन का निहित स्वार्थ ऐसा भयानक था कि भारत का विभाजन भी हुआ और विश्व के इतिहास का सबसे बड़ा पलायन भी हुआ. लाखों लोग इधर उधर हुए, लाखों को मार गिराया गया. इस बंटवारे ने इंसान को हैवान बना दिया तो क्यूँ आज का दिन इतना ख़ुशी का है? जिस देश के बंटवारे को रोकने के लिए गाँधी जी कांग्रेस की सदस्यता तक छोड़ने का मन बना चुके थे, जिस गाँधी के बिना कांग्रेस में पत्ता तक नहीं हिलता वह कांग्रेस गोलमेज सम्मलेन में ब्रिटेन के साथ बैठती है और गाँधी जी को बुलाया भी नहीं जाता. भारत के विभाजन के लिए जिस शिमला में जिस समझौते का हस्ताक्षर हुआ था उस समझौते के समय गाँधी जी नाराजगी के कारण वहां गए भी नहीं. आजादी के बाद भी उन्होंने आस नहीं छोड़ी कि भारत फिर से एक हो सकता है. इसके लिए उन्होंने बंटवारे की शर्तों के अनुसार पाकिस्तान को कुछ ५५ करोड़ देने की मांग रखी और उसके बाद दिल्ली से कराची तक पैदल यात्रा की घोषणा की पर उसके बाद क्या हुआ वह इतिहास जानता है. कुछ तथाकथित हिन्दू राष्ट्र की मांग रखने वाले राष्ट्रभक्तों ने उनकी हत्या की साजिश की और नाथू राम ने उनकी हत्या कर दी. 

विश्व के सबसे बड़े पलायन में हिंदुस्तान छोड़ कर गए मुस्लिमों ने यहाँ कुछ उन्नीस लाख एकड़ जमीन छोड़ी और पाकिस्तान से आये हिन्दू वहां कुछ सत्ताईस लाख एकड़ जमीन छोड़ कर आये. भारत में आये हिन्दुओं को रिफ्यूजी और पाकिस्तान में गए मुस्लिमों को वहां मुहाजिर कह कर पुकारा जाता है. आखिर क्यों? तथाकथित हिन्दू राष्ट्र की मांग करने वाले कुछ नेता उन्हें बराबर का दर्जा क्यों नहीं देते. क्या पाकिस्तान उनके अखंड भारत के नक़्शे पर नहीं है? क्या पाकिस्तान से आये हिन्दू किसी मायने में कम हैं? विभाजन से ठीक पहले गाँधी जी ने बंगाल का रूख किया. बंगाल एक साल से हिंसा में जल रहा था. जो बंगाल १९०५ में अंग्रेजों की लाख कोशिश के बावजूद भी अलग नहीं हुआ उसे अंग्रेजों ने बेरहमी से अलग कर दिया. बंगाल के मुसलमान जो दुर्गा पूजा में हिन्दुओं के बराबर हिस्सा लेते थे और रीति रिवाजों में पूरी तरह से एक समान थे वे इतनी बुरी तरह लड़ रहे थे; इस से गाँधी जी व्यथित थे. नोआखली में उनकी पैदल यात्रा और उनके अनशन ने ऐसा जादू किया कि दो दिन में बंगाल की हिंसा रुक गयी. यूनियनिस्ट पार्टी के बैनर तले पंजाब भी बंटवारे से पहले पूरी तरह से संगठित था. इस पार्टी के नेता श्री छोटू राम को हिन्दू बहुल क्षेत्र में छोटू राम और मुस्लिम बहुल क्षेत्र में छोटू खान के नाम से जाना जाता था. जहाँ पूरे जोर लगाने के बावजूद भी मुस्लिम लीग चुनाव नहीं जीत पायी थी, वहां लोग एक दूसरे के खून के प्यासे क्यों हो गए? ये बड़े सवाल हैं जिनका उत्तर आज के दिन हम सब को सोचना होगा. यह आजादी बड़े जतन के बाद आई थी; इसकी कीमत हमारे पूर्वजों ने चुकाई थी हमने नहीं. `

इस बंटवारे से व्यथित होकर फैज अहमद फैज ने एक ग़ज़ल लिखी थी उसका छोटा सा भाग यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ, इसे पढ़ें और सोचे कि हम कहाँ से चले थे, कहाँ रुके हैं और कहाँ जाना है:
"ये दाग दाग उजाला, ये शब-गजीदा सहर,
वो इंतज़ार था जिसका, ये वो सहर तो नहीं

ये वो सहर तो नहीं जिस की आरजू लेकर
चले थे यार कि मिल जायेगी कहीं न कहीं
फ़लक के दश्त में तारों कि आखरी मंजिल
xx xx xx xx xx 
अभी गरानी-ऐ-शब में कमी नहीं आई
नजात-ऐ-दीदा-ओ-दिल की घड़ी नहीं आई
चले चलो की वो मंजिल अभी नहीं आई "

यह धरा बहुत पवित्र है. इसे पवित्र रखना हर भारत वासी का कर्तव्य है. भारत कभी भी एक धर्म या एक जाति को नहीं मान सकता. हम पंथनिरपेक्ष हैं, हम एक बहुत गौरवशाली इतिहास समेटे हुए हैं. जरूरत है तो उस इतिहास को सही मायनों में पढने की और अपनी आजादी के नायकों की इज्जत करने की. सोचिये हम क्यों अपने आप को इतना महान बताते हैं जब हमारे हाथ भी रक्त रंजित हैं. क्या हम अपने इतिहास को जानते हैं? भारत के स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर मैं ये प्रश्न हम सब के लिए छोड़ रहा हूँ और इस लेख को बिना किसी अंतिम निर्णय के बंद कर रहा हूँ. यह प्रश्न है, उत्तर नहीं. तो निर्णय हम सबके हाथ में है, केवल मेरे हाथ में नहीं.

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