शबाब आया किसी बुत पर फ़िदा होने का वक़्त आया
मेरी दुनिया में बन्दे के खुदा होने का वक़्त आया
उन्हें देखा तो जाहिद ने कहा ईमान की ये है
कि अब इंसान के सिजदा रवा होने का वक़्त आया
तकल्लुम की ख़ामोशी कह रही है हर्फे-मतलब से
कि अश्क-आमेज नज़रों से अदा होने का वक़्त आया
खुदा जाने ये है औजे-यकीं या पस्ती-ए-हिम्मत
खुदा से कह रहा हूँ नाखुदा होने का वक़्त आया
हमें भी आ पडा है दोस्तों से काम कुछ यानी
हमारे दोस्तों के बेवफा होने का वक़्त आया----पंडित हरिचंद 'अख्तर'
अश्क-आमेज=आंसू भरी, औजे-यकीं=विश्वास की पराकाष्टा, पस्ती-ए-हिम्मत=साहस.
कितनी गूढ़ सच्चाई छिपी है इस ग़ज़ल में, ज़रा सोचिये
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