Tuesday, December 27, 2011

पास खडा था भ्रष्टाचार

सुबह उठ कर आँख खुली तो पास खडा था भ्रष्टाचार,
अट्टहास लगाता हुआ, प्रश्न चिह्न लगाता हुआ.

जब पूछा मैंने, तुझमें इतने प्राण कहाँ से आये,
के तुम बिन पूछे, बिन बताए मेरे घर भी दौड़ आये.

हंसता हुआ, वो बोला, तुम शायद अवगत नहीं,
कल रात ही संसद में मुझे जीवनदान मिला है.

देश शायद सो रहा था, दिवा स्वप्न के बीज अपने घर में बो रहा था,
इतने में एक कानून आया, जिसने भ्रष्टाचार को मिटाने का संकल्प दोहराया.

बस उस कानून से मुझे जीवन दान मिला है, 
अब तक तो मैं सिर्फ घर के बाहर सड़क पर, दफ्तरों में पाया जाता था,
अब मैं घर में, आपके साथ खड़ा,
अट्टहास करूँगा, आपकी बेचैनी पर,
मेरा जीवन हरण करने चला था जो चौकीदार,
उसे ही रिश्वत से मैंने अपने साथ मिला लिया......रविन्द्र सिंह ढुल/२८.१२.२०११ 

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