Sunday, December 11, 2011

इस सदन में मैं अकेला ही दिया हूं; / रामावतार त्यागी

इस सदन में मैं अकेला ही दिया हूं; 
मत बुझाओ !
जब मिलेगी, रोशनी मुझसे मिलेगी !!

पांव तो मेरे थकन ने छील डाले 
अब विचारों के सहारे चल रहा हूं
आंसूओं से जन्म दे-देकर हंसी को
एक मंदिर के दिये-सा जल रहा हूं;
मैं जहां धर दूं कदम वह राजपथ है;
मत मिटाओ
पांव मेरे देखकर दुनिया चलेगी !!

बेबसी मेरे अधर इतने न खोलो
जो कि अपना मोल बतलाता फिरूं मैं
इस कदर नफ़रत न बरसाओ नयन से
प्यार को हर गांव दफनाता फिरूं मैं
एक अंगारा गरम मैं ही बचा हूं ।
मत बुझाओ ।
जब जलेगी, आरती मुझसे जलेगी !!

जी रहो हो किस कला का नाम लेकर
कुछ पता भी है कि वह कैसे बची है,
सभ्यता की जिस अटारी पर खड़े हो
वह हमीं बदनाम लोगों ने रची है;
मैं बहारों का अकेला वंशधर हूं,
मत सुखाऒ !
मैं खिलूंगा, तब नई बगिया खिलेगी !!

शाम ने सबके मुखों पर आग मल दी
मैं जला हूं, तो सुबह लाकर बुझूंगा
ज़िंदगी सारी गुनाहों में बिताकर
जब मरूंगा देवता बनकर पूजूंगा;
आंसूओं को देखकर मेरी हंसी तुम
मत उड़ाओ !
मैं न रोऊं, तो शिला कैसे गलेगी !!

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